Description
एक असुर, एक देव, एक अवतार, एक प्रजापति तथा एक पुत्र… इन पाँचों के तमशीशों की भगवान शिव ने मुंडमाला बनाई थी, इस पुस्तक में हम आपको बताएंगे कि उन्होंने ऐसा क्यों किया! इस महागाथा में हम जानेंगे कि भगवान शिव को “रूद्रदेव” की उपाधि क्यों दी गई है। यह भगवान शिव की वो कथाएं हैं जिन्हें बचपन में आपके प्रियजन आपको सुनाने में संकोच करते थे, उसका कारण यह था कि ये कथाएं काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसी तामसिक भावनाओं से परिपूर्ण हैं।
“प्रजापति” अध्याय में एक पुत्री अपने ही पिता के अभिमानरुपी चिता में जलकर राख हो जाती है। “प्रहलाद का स्वप्न” हमें दो महाकशक्तिशाली दैवीय शक्तियों के टकराव का प्रलयंकरी दृश्य दिखाता है। “पराई स्त्री” अध्याय में एक पुत्र अपनी ही माता के प्रति आकर्षित हो अपने सर्वनाश का बीज बो देता है। “दृष्टिहीन” अध्याय में एक अंधा असुर दृष्टि पाकर तमस के अंधकार में डूबता चला जाता है। “पाँचवा शीश” अध्याय में सृष्टि के जनक अपनी ही रचना के प्रति मोहित हो अधर्म की सारी
सीमाएँ लांघ जाते हैं।